Tapasvi Samrat Acharya Shri Sanmati Sagar Ji

Profile

Name Tapasvi Samrat Acharya Shri Sanmati Sagar Ji
Date of Birth 07/Jul/1938
Name before Diksha ओमप्रकाश
Father's Name सेठ श्री प्यारेलालजी
Mother's Name जयमाला देवी
Place of Birth फफोतू (जिला - एटा (उ. प्र.)
Education बी. ए., प्रभाकर
Brhamcharya Vrat (Date, place and name of guru)
01-Jan-1960 / आगरा (उ. प्र.) / परम पूज्य आचार्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी महाराज
Kshullak Diksha (Date, place and name of guru)
08-Dec-1961 / मेरठ (उ. प्र.) (कृष्णा फ्लोर मिल) / परम पूज्य आचार्य श्री 108 विमल सागर जी महाराज
Muni Diksha (Date, place and name of guru)
11-Sep-1962 / बीस पंथी कोठी, श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र, मधुवन / परम पूज्य आचार्य श्री 108 विमल सागर जी महाराज
Acharya Diksha (Date, place and name of guru)
01-Mar-1972 / मेहसाणा (गुजरात) / परम पूज्य आचार्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी महाराज
Samadhi (Date, place)
24-Dec-2010 / निगड़ेवाड़ी (कोल्हापुर-गांधीनगर) में, समाधि संस्कार - उदगांव (कुंजवन क्षेत्र पर हुआ।)

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About Tapasvi Samrat Acharya Shri Sanmati Sagar Ji

आचार्य महावीर कीर्ति जी महाराज के सानिध्य में आगम, अध्यात्म ग्रन्थों के साथ यंत्र-मंत्र, ज्योतिष्क आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया, इसके साथ ही - समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, सर्वार्थसिद्धि, तत्वार्थ राजवार्तिक, त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ति आदि चारों अनुयोगों के साथ न्याय, छंद व अलंकार का भी अध्ययन किया।

विशेष रुचि: न्याय शास्त्र में


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गुरुदेव श्री 108 आचार्य सन्मतिसागर महाराज भोजन नहीं करते थे. वे 48 घंटो में एक बार मट्ठा और पानी लेते थे. आपने आचार्य 108 महावीर कीर्ति जी महाराज से 18 साल की आयु में ब्रहमचर्य व्रत लेते ही नमक का त्याग कर दिया . सन 1961 में (मेंरठ ) में आचार्य विमलसागर महाराज से छुलक दीक्षा लेते ही दही,तेल व घी का त्याग कर दिया था.सन 1962 में मुनि दीक्षा लेते ही आपने शकर का भी त्याग कर दिया सन 1963 में आप ने चटाई का भी त्याग कर दिया और 1975 में आपने अन्न का भी त्याग कर दिया. सन 1998 में उन्होंने दूध का भी त्याग कर दिया. सन 2003 में उदयपुर में मट्ठा और पानी का अलावा सबका त्याग कर दिया. उन्होंने रांची में 6 माह तक और इटावा में 2 माह तक पानी का भी त्याग किया. उन्होंने अपने एक चातुर्मास में 120 दिनों में केवल 17 दिन आहार लिया.दमोह चातुर्मास में उन्होंने एक आहार एक उपवास फिर दो उपवास एक आहार तीन उपवास एक आहार .........इस तरह बढते हुए, 15 उपवास एक आहार, 14 उपवास एक आहार, 13 उपवास एक आहार ,...........से करतेकरते एक उपवास एक आहार, तक पहुच कर सिंहनिष्क्रिदित महा कठिन व्रत किया. उन्होंने अपने 49 साल के तपस्वी जीवन में लगभग 9986 उपवास किये. लगभग 27.5 सालो से भी अधिक उपवास किये.आपके बारे में आचार्य 108 पुष्पदंत सागर महाराज ने यहाँ तक कहा है की महावीर भागवान के बाद आपने ने इतनी तपस्या की है. सन1973 में उन्होंने शिखरजी की निरंतर 108 वंदना की थी.वे भरी सर्दियों में भी चटाई नहीं लेते थे. गुरुदेव 24 घंटो में केवल 3 चार घंटे ही विश्राम करता थे. वे पूरी रात तपस्या में लगे रहते थे.उन्होंने समाधी से 3 दिन पहले उपवास साधते हुए लोगो का कहने का बावजूद आपना आहार नहीं लिया. अपनी समाधी से पहले दिन यानि 23-12-10 को आपने अपने शिष्यों को पढ़ाया और शाम को अपना आखरी प्रवचन भी समाधी पर ही दिया. और सुबह 5.50 बजे आपने अपने आप पद्मासन लगाया भगवन का मुख अपनी तरफ करवाया और अपने प्राण 73 वर्ष की आयु में 24-12-10 को आँखों से छोड़ दिए.

ऐसे तपस्वी सम्राट को मेरा कोटि कोटि नमन

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