न्याय विद्या दर्शनशास्त्र का अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय है।
न्याय विद्या तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति का आवश्यक उपाय है। इसके बिना समीचीन तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति असंभव है।
न्याय विद्या सामान्यतः एक कठिन विषय माना जाता है पर प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत इस पुस्तक में यह कठिन विषय भी अत्यंत सरल रूप में विवेचित किया गया है।
जन्मभूमि- गुढाचन्द्रजी, जिला- करौली, राजस्थान, पिन- 322213
शिक्षा - शास्त्री, आचार्य(जैनदर्शन,प्राकृत), एम. ए., एम. फिल., पीएच. डी. (हिन्दी साहित्य)
वर्तमान पद - प्रोफेसर, जैनदर्शन विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, क़ुतुब सांस्थानिक क्षेत्र, नई दिल्ली-110016
विशेषता- साहित्यिक एवं दार्शनिक विषयों के लेखक एवं व्याख्याता | लगभग 40 पुस्तकों एवं 150 शोधपत्रों के लेखक एवं सम्पादक | ‘प्राकृतविद्या’ आदि शोध-पत्रिकाओं के सम्पादक | अनेक साहित्यिक, दार्शनिक एवं सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध |
भाषाज्ञान- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, राजस्थानी |
पुरस्कार - ऋषभदेव, महावीर, पुष्पदन्त-भूतबली, उमास्वामी, वात्सल्य-रत्नाकर, ब्रह्मगुलाल, गुरु गोपालदास बरैया, अहिंसा इंटरनेशनल जैन साहित्य पुरस्कार, श्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार |
प्रमुख कृतियाँ- न्यायमन्दिर, दौलत-विलास, भारतीय दर्शन में आत्मा एवं परमात्मा, तत्त्वार्थसूत्र-प्रदीपिका, प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय, प्रमुख जैन आचार्यों का परिचय, आचार्य विद्यानन्द निबन्धावली, श्रीपालचरित, जैन शतक, योगसार, आप्तपरीक्षा इत्यादि |