मुनि श्री प्रणम्य सागर जी द्वारा वर्धमान स्तोत्र के 64 काव्यों का विवेचन
मुनिश्री १०८ प्रणम्य सागर जी महाराज श्रमण साधुओं की वंदनीय परम्परा में महनीय स्थान के अधिकारी पुण्य पुरुष हैं| आपके महान परिचय को लेखनी से लिख पाना अत्यंत दुर्द्धर है| पहाड़ को काटकर सुरंग निकाली जा सकती है, धरती को चीर कर पानी निकाला जा सकता है, आसमां को फाड़कर धरती पर भागीरथी को धरती पर लाया जा सकता है लेकिन आपके जैसे गुरु की महिमा का वर्णन संभव नही|