सर्वार्थसिद्धि एक प्रख्यात जैन ग्रन्थ हैं। यह आचार्य पूज्यपाद द्वारा प्राचीन जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी गयी टीका हैं। इसमें तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक श्लोक को क्रम-क्रम से समझाया गया है।
सर्वप्रथम ग्रन्थ में तत्त्वार्थसूत्र के मंगलाचरण का अर्थ समझाया गया है। सर्वार्थसिद्धि के दस अध्याय हैं :[4]
1. दर्शन और ज्ञान
2. जीव के भेद
3. उर्ध लोक और मध्य लोक
4. देव
5. अजीव के भेद
6. आस्रव
7. पाँच व्रत
8. कर्म बन्ध
9. निर्जरा
10. मोक्ष
आचार्य पूज्यपाद चौथी शताब्दी के प्रभावशाली दार्शनिक आचार्य हुए हैं। उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ पर सर्वाथसिद्धि शीर्षक अप्रतिम टीका का सृजन किया है। गद्य में लिखी गई यह मध्यम परिमाण की विशद् वृत्ति है। इस टीका में सूत्रानुसार सिद्धांत के प्रतिपादन के साथ दार्शनिक विवेचन, विज्ञान का भी वर्णन किया है। परमाणुओं में बंध की प्रक्रिया का अत्यन्त सूक्ष्म वर्णन प्रस्तुत किया गया है।