इसमें निर्वाण कांड में उल्लेखित सभी तीर्थ क्षेत्रों का सचित्र वर्णन दिया गया है।
१३ जुलाई १९६२ को नन्ही देवरी (सागर) में जन्मे मुनि श्री १०८ समता सागरजी महाराज।
सागरमे १९८० में हुए आचार्य श्री १०८ विद्या सागर जी महाराज का सानिध्य पाकर बहुत ज्यादा उनसे प्रभावित हुए।
मुक्ता गिरी में संघ में जाकर सम्मिलित हो गए ।ढाई साल तक गुरुवर के सानिध्य में रहकर अधयन्न किया ।
१० फरवरी १९८३ को सम्मेद शिखर जी पर ऐलक पद प्राप्त किया और २५ सितम्बर को इसरी में क्वार वादी तीज को मुनि दीक्षा प्राप्त की।
आप एक कुशल कवि होने के साथ साथ अच्छे लेखक ,विचारक और प्रवचन कार भी है ।
विभिन्न स्थलों पर चातुर्मास करके युवा पीढ़ी को संस्कारित कर आपने अभी तक जो धर्म प्रभावना की है वह अद्भुत है।