दिगम्बर जैन आचार्य कुन्दकुन्द देव विरचित अष्ट- पाहुड जैन धर्म की एक ऐसी कालजयी रचना है जिसमें धर्म की साधना/आराधना का विस्तृत विवेचन के साथ उससे संबंधित शिथिलाचार, कुरीतियां आदि की जानकारी देकर हमे उनको त्याग करने के उपदेश के साथ वास्तविक मोक्षमार्ग का दिग्दर्शन कराया है ।
इसकी उपयोगिता मोक्ष प्राप्ति के लक्ष्य वालों के लिये भूतकाल में थी, वर्तमान काल में भी है और भविष्य काल में भी रहेगी।
आचार्य कुन्दकुन्द (ई.१२७-१७९) द्वारा ८५ पाहुड़ ग्रन्थों का रचा जाना प्रसिद्ध है, उनमें से आठ पाहुडों के संग्रह को अष्टपाहुड़ कहते हैं।
दर्शनपाहुड़,
सूत्रपाहुड़,
चारित्रपाहुड़,
बोधपाहुड़,
भावपाहुड़,
मोक्षपाहुड़,
लिंगपाहुड़,
शील पाहुड़
दिगम्बर जैन आचार्य कुन्दकुन्द देव विरचित अष्ट- पाहुड जैन धर्म की एक ऐसी कालजयी रचना है जिसमें धर्म की साधना/आराधना का विस्तृत विवेचन के साथ उससे संबंधित शिथिलाचार, कुरीतियां आदि की जानकारी देकर हमे उनको त्याग करने के उपदेश के साथ वास्तविक मोक्षमार्ग का दिग्दर्शन कराया है ।
इसकी उपयोगिता मोक्ष प्राप्ति के लक्ष्य वालों के लिये भूतकाल में थी, वर्तमान काल में भी है और भविष्य काल में भी रहेगी।