Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj

Profile

Name Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj
Date of Birth 18/Sep/1950
Name before Diksha Yashvant Kumar Pancholiya
Father's Name Shri Kamal Chand Jain
Mother's Name Smt. Manorama Devi
Place of Birth Sanawad, Dist. Khargon, M.P
Education B.A.
Muni Diksha (Date, place and name of guru)
24-Feb-1969 / Mahaveer Ji (Rajasthan) / Acharya Shri 108 Dharm Sagar Ji Maharaj
Acharya Diksha (Date, place and name of guru)
24-Jun-1990 / Parsola, Udaipur, Rajasthan / Acharya Shri 108 Dharm Sagar Ji Maharaj

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About Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj

आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज का गृहस्थ अवस्था का नाम यशवंत कुमार था. श्री यशवंत कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के सनावद ग्राम में हुआ.श्रीमती मनोरमा देवी एवं पिता श्री कमल चाँद पंचोलिया के जीवन में इस पुत्र रत्न का आगमन भादों सुदी ७ संवत २००६ दिनांक १८ सितम्बर सन १९५० को हुआ. आपने बी.ए. तक लौकिक शिक्षा ग्रहण की, सांसारिक कार्यों में आपका मन नहीं लगता था. संयोगवश परम पूज्य ज्ञानमती माताजी का सनावद में चातुर्मास हुआ जिसमे आपने अपने वैराग्य सम्बन्धी विचारों को और अधिक दृड़तर बनाया. आपने आचार्य श्री विमल सागर ji महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया है, १८ वर्ष की अवस्था में आचार्य श्री धर्म सागर ji महाराज से आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की, यह दिन फाल्गुन सुदी ८ संवत २५२५ के रूप में विख्यात हुआ है, जब श्री शांतिवीर नगर, श्री महावीर जी में मुनि दीक्षा लेकर आपको मुनि श्री वर्धमान सागर नाम मिला. चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर18 जी महाराज की परम्परा के पंचम पट्टादीश होने का आपको गौरव प्राप्त है, इस पंचम काल में कठोर तपश्चर्या धारी मुनि परम्परा को पुनः स्थापित करने का जिन आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज को गौरव हासिल हुआ है, उसी परम्परा के पंचम पट्टादीश के रूप निर्दोष चर्या का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाने का पुण्य मिलना निश्चित इस जन्म के अलावा पूर्व जन्म की साधनाओ का ही सुफल है. वआचार्य श्री वर्धमान सागर जी अत्यंत सरल स्वभावहोकर महान क्षमा मूर्ति शिखर पुरुष हैं, वर्तमान वातावरण में चल रही सभी विसंगताओं एवं विपरीतताओं से बहुत दूर हैं, उनकी निर्दोष आहार चर्या से लेकर सभी धार्मिक किर्याओं में आपआज भी चतुर्थ काल के मुनियों के दर्शन का दिग्दर्शन कर सकते हैं. 


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चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की परम्परा में चतुर्थ पट्टाचार्य श्री अजित सागर जी महाराज ने आपको इस परम्परा में पंचम पट्टाचार्य के रूप में आचार्य घोषित किया था, आचार्य श्री अजित सागर jiमहाराज ने अपनी समाधि से पूर्व सन १९९० में एक लिखित आदेश द्वारा उक्त घोषणा की थी. तदुपरांत उक्त आदेश अनुसार उदयपुर (राजस्थान) में पारसोला नामक स्थान पर अपार जन समूह के बीच आपका आचार्य शान्तिसागर18 ji महाराज की परम्परा के पंचम पट्टाचार्य पद पर पदारोहण कराया गया. उस समय से aajआज तक निर्विवाद रूप से आचार्य श्री शान्तिसागर18 jiजी महाराज की निर्दोष आचार्य परम्परा का पालन व् निर्वहन कर रहे हैं. आपका वात्सल्य देखकर भक्तजन नर्मीभूत हो जाते हैं, आपकी संघ व्यवस्था देखकर मुनि परम्परा पर गौरव होता है. पूर्णिमा के चंद्रमा के समान ओज धारण किए हुए आपका मुखमंडल एवं सदैव दिखाई देने वाली प्रसन्नता ऐसी होती है कि इच्छा रहती है कि अपलक उसे देखते ही रहें

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