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अंतर्द्वंद का मतलब है, किसी विषय को लेकर मन में कई विचार आना. यह दो शब्दों से मिलकर बना है - अंतर और द्वंद. अंतर का मतलब है हृदय और द्वंद का मतलब है मन में चल रहा विचारों का झंझावात
आचार्य कुंदकुंद (ई. 127-179) कृत आचरण-विषयक 167 प्राकृत गाथाओं में निबद्ध ग्रंथ है ।
साधु और श्रावकधर्म का वर्णन करने वाला यह श्री रयणसार ग्रंथ आ. श्री कुंदकुंद स्वामी की. अमूल्य कृति है ।
पुस्तक के बारे में:
1. वर्तमान चौबीसी के चौबीस तीर्थंकर भगवान के 24x5= 120 कल्याणक हुए हैं और संयोग की बात यह है कि ये सभी 120 कल्याणक कुल 24 तीर्थ क्षेत्रों पर ही हुए हैं जिनकी सचित्र जानकारी इस पुस्तक में है।
2. साथ ही पंच कल्याणक, सोलह कारण भावनाओं, अष्ट प्रतिहार्य आदि का भी आगम सम्मत वर्णन है जो कि प्राचीन ग्रंथों के आधार से लिया गया है ।
3. इसके अतिरिक्त इन सभी चौबीस तीर्थ क्षेत्रों में श्रद्धालुओं को रुकने हेतु धर्मशाला, भोजन व्यवस्था,आसपास के जैन मंदिरों की जानकारी उनके फोन नंबर एवं एड्रेस के साथ दिए गए हैं।
4. इन सभी 24 तीर्थ क्षेत्रों पर पहुंचने के साधन, नजदीकी रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट आदि की जानकारी समाहित है। साथ ही कुछ मुख्य ट्रेन नंबर भी दिए गए हैं ।
5. पुस्तक में तीर्थ क्षेत्रों से जुड़े हुए प्राचीन एवं मनभावन भजन भी दिए गए हैं , जिन्हें गुनगुनाकर तीर्थ यात्रा करते समय आनंद दुगुना हो जाएगा।
6. जगह जगह पर जैन धर्म की सुंदर सुंदर गाथाएं, श्लोक, वाक्य आदि भी समाहित करे गए हैं।
7. पुस्तक में एक बड़ी सुंदर सी प्रश्नोत्तरी रखी गई है जिसमें लगभग 25 प्रश्न हैं। जिन्हें हल करने में निस्संदेह ही आनंद आएगा।
यह पुस्तक एक कोशिश है इन पवित्र तीर्थ क्षेत्रों की महिमा के बारे में बतलाने कि और इन कल्याणक क्षेत्रों की वंदना के लिए उत्साहित करने की। आशा है कि यह पुस्तक उपयोगी लगेगी तथा आपकी तीर्थ यात्रा में सहायक बनकर हमारे इस प्रयास को सार्थक करेगी।
श्री पद्मसिंह मुनिराज कृत अद्भुत ग्रन्थ णाणसार (ज्ञानसार)
यह ग्रंथ अलौकिक है इसकी एक एक गाथा अत्यन्त तात्त्विक है।
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जैन मंदिरों तथा तीर्थ क्षेत्रों की जानकारी वैज्ञानिक आधार से एकत्रित करने के बाद सभी जैन आगम को डिजिटल रूप में सुरक्षित करने का सराहनीय कार्य.
अतिरिक्त महानिदेशक (सेवा निवृत्त), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय
जैन धर्म ग्रंथो तथा पुस्तकों को सुरक्षित रखने व जन-जन तक पहुंचाने के इस भागीरथी कार्य की बहुत बहुत अनुमोदना.
जैनदर्शन विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय