Shwetamber Jain Temple in Khambhat, Anand
श्री सुखसगार पार्श्वनाथ-खारवाडो - खंभात
खंभात के खारवाडा के श्री सीमंधर स्वामी जिनालय के दाँयी तरफ खडकी इलाक़े में श्री सुखसागर पार्श्वनाथ का घुम्मटबंधी जिनालय है । यहाँ खडकी होकर ही नागरवाडा इलाक़े के जाने के लिए मार्ग है ।
संवत १६७३ मे कवि श्री ऋषभदास रचित त्रंबावती तीर्थमाळा में चोकसी की पोळ मे सुखसागर पार्श्वनाथ के जिनालय का उल्लेख प्राप्त होता है ।
आहे चोकसी केरीअ पोलिमां
यन भुवन सु च्यार
आहे श्री च्यंतामण्य देहरई
सोल ब्यंब सुं सार.
आहे सुखसागरना भुवनमां
मननि रंगई ए जईई
आहे तेत्रीस ब्यंब तीहां नमी
भविजिन निरमल थईई.
संवत १७०१ मे पूज्य मति सागर रचित खंभाईति तीर्थमाला मे ' लांबी ओटि सुखसागर पोल ' इलाक़े मे सुखसागर पार्श्वनाथ का जिनालय विद्यमान था ।यह इलाक़े मे जिनालयो का वर्णन नौ और दस क्रमांक की कडी मे किया गया है ।इसके पहेले छ:,सात और आठवें क्रमांक की कडी मे खारवाडा के जिनालयो का वर्णन करने मे आया है । और अग्यारवी कड़ी मे महालक्ष्मी की पोळ मे आये हुए जिनालयो का वर्णन करने मे आया हुआ है । इसका मतलब यह है कि ' लांबी ओटि सुखसागर पोल ' खारवाडा इलाक़ा और महालक्ष्मी की पोळ के आसपास का अथवा तो उसके अंतर्गत आया हुआ होगा और यहाँ का दुसरा कितना भाग चोकसी की पोळ के नाम से प्रचलित हुआ होगा ।
लांबी ओटि सुखसागर पोलि शांति प्रासादि त्रीसजी
चिंतामणी त्रीस वली सुखसागरि अडसठि जिनवर कहीसिजी
शीलविजयजी रचित तीर्थमाला में ( संवत १७२१ से संवत १७३८ मे ) सुखसागर पार्श्वनाथ जिनालय का उल्लेख नीचे मुजब आता है ।
—-
" थंभण प्रणमुं जीराउलो ,
नारंगो भीडभंजन शामळो
नवपल्लव जगवल्लभ देव ,
सुखसागरनी कीजे सेव.
संवत १९०० में महालक्ष्मी की पोळ मे तीन जिनालय विद्यमान थे । उस में से क्रमांक संख्या २० मे श्री सुखसागर पार्श्वनाथजी के इस जिनालय का उल्लेख हुआ है ।
“अथ महालक्ष्मीनी पोळ देहरां ३ विगत
२० श्री सुखसागर पार्श्वनाथनुं देहरुं
२१ श्री महावीर स्वामी - श्री गौतम स्वामीनुं देहरुं
२२ श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथनुं देहरुं. “
संवत १९४७ मे प्रकाशित हुए जयतिहुअण स्तोत्र ग्रंथ की प्रस्तावना मे खंभात के जिनालयो मे सुखसागर पार्श्वनाथ जिनालय का उल्लेख कही पर भी वर्णित नही है ।
संवत १९६३ में जैन श्वेतांबर डिरेक्टरी मे भी श्री सुखसागर पार्श्वनाथ जिनालय का उल्लेख कहीं पर भी नहीं है - ऐसा प्रतित होता है कि कुछ भुल की वजह से रह गया हो ।
संवत १९८४ मे खंभात के ईतिहास और चैत्यपरिपाटी में सुखसागर पार्श्वनाथजी का जिनालय खारवाडा मे दर्शाया गया है । उस समय मे पाषाण की दस प्रतिमाए बिराजमान थी । पृ. ४३ पर इस जिनालय के लिए नीचे प्रकार की नोंध प्राप्त होती है -
" ..... नागरवाडा मे जाने के मार्ग पर श्री सुखसागर पार्श्वनाथजी का जिनालय है । वहाँ दर्शन करना उसकी व्यवस्था शा. मनसुखभाई लालचंद रखते है ।”
संक्षिप्त में संवत १९०० में सुखसागर पार्श्वनाथजी का जिनालय महालक्ष्मी की पोळ मे दर्शनाने मे आया है । तत्पश्चात् संवत १९४७ में तथा संवत १९६३ मे इस जिनालय का उल्लेख कोई कारणवश नहीं हुआ ।उसके बाद यह जिनालय महालक्ष्मी की पोळ चोकसी की पोळ मे से हस्तांतरित कर लेने मे आया और खारवाडा विस्तार मे पधराने मे आया हुआ है । खारवडा मे यह जिनालय हमारी मान्यता के अनुसार संवत १९०० से संवत १९८४ के समय काल के दौरान हस्तांतरित करने मे आया होगा जो की इस विषय मे और ज़्यादा संशोधन की ज़रूरत है ।
संवत २०१० मे जैन तीर्थ सर्व संग्रह में खारवाडा मे आये हुए इस सुखसागर जिनालय को घुम्मटबंधी जिनालय के रूप मे दर्शाने मे आया है । उस समय मे पाषाण की नौ प्रतिमाजी बिराजमान थी । मंदीरजी की व्यवस्था शेठ अंबालाल बापुलाल के द्वारा होती थी । जिनालय मे उस समय मे सुंदर चित्रकाम का उल्लेख हुआ है ।जिनालय की व्यवस्था श्री केशवलाल ताराचंद खारवाडा इलाक़े के रहने वालो ने भी की हुयी है ।
जिनालय बहार से बहुत ही सुंदर दिखता है । जिनालय मे प्रवेश करते ही सन्मुख श्री सुखसागर पार्श्वनाथ का अष्ट प्रतिहार्य परिकर युक्त आरस की मनोहर प्रतिमाजी के दर्शन होते है ।
रंगमंडप के घुम्मट मे वाजिंत्रो को बजाते हुए शिल्पो का चित्रांकन हुआ है । गंभारे की दीवारों पर भी सुंदर चित्रकाम है । छत मे लगे हुए लकडे के पाट है जो जीर्ण हो गये है और जीणोद्धार की जरूरत है ।
जिनालय की दीवारों पर शत्रुंजय , गिरनार , आबु , तारंगाजी जैसे अनेको तीर्थो के चौद पटों के उपरांत बहुत सारे प्रसंगों का चित्रकाम किया हुआ है । जिसमे से मुख्य श्रीपाळ - मयणा सुंदरी का प्रसंग , श्रेणिक राजा गौतम स्वामी को श्रीपाळ राजा का चारित्र पूछते हुए , धवल शेठ , श्रीपाळ राजा , कमठ का उपसर्ग , बाहुबली के उपरांत महावीर स्वामी का त्रिशला माता के गर्भ मे आना । देवानंदा की कुक्षी मे से त्रिशला माता की कुक्षी मे गर्भ के परिवर्तन आदि का चित्रांकन है ।
मूळनायक श्री सुखसागर पार्श्वनाथ की प्रतिमा के उपर का लेख घिस गया हुआ है । फिर भी अस्पष्ट और टुकड़े टुकड़े मे शिलालेख पढ पाते है ।
" पादशाही श्री अकबर प्रवर्तित अलई संवत ४१ वर्षे फागुन.... सा सहीस भार्या सहीजलदेसुत सा कहानुआ नाम्ना.... सुखसागर पार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं च..... सूरि प्रवर्तन श्री शत्रुंजय तीर्थादिकर मोचन.... श्री हीरविजयसूरि.... श्री विजयसेन सूरिभि. "
उपरोक्त लेख पढ पाते है । गंभारे मे पाषाण की कुल सात प्रतिमा बिराजमान है । रंगमंडप मे पाषाणनी कुल दो प्रतिमाए आमने सामने के गोखले मे बिराजमान है । मूळनायकजी के बायें गंभारे मे श्री आदिनाथ भगवान और दाएँ गंभारे मे श्री सुमतिनाथ भगवान बिराजमान है । श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा के उपर संवत १६६६ का लेख है और श्री सुमतिनाथ प्रभुजी की प्रतिमा पर संवत १६६४ का लेख है ।
संक्षिप्त मे सुखसागर पार्श्वनाथ का जिनालय संवत १६७३ मे चोकसी की पोळ मे , संवत १७०१ मे लम्बी ओटि सुखसागर पोळ नाम से प्रचलित इलाक़े मे , संवत १९०० मे महालक्ष्मी की पोळ मे विद्यमान था । उसके बाद संवत १९४७ मे तथा संवत १९६३ मे यह जिनालय का उल्लेख कही भी मिलता नही है । और पुनः संवत १९८४ मे यह जिनालय का उल्लेख सर्वप्रथम बार महालक्ष्मी की पोळ के इलाक़े के बदले खारवाडा के इलाक़े मे मिलता है । संवत १९०० से संवत १९८४ के दरम्यान इस जिनालय की विशेष कोई जानकारी प्राप्त नही होती है । इसलिए यह जिनालय संवत १९८४ के पहेले का मान सकते है । जो कि मूळनायक की प्रतिमाजी का लेख प्रतिमाजी की प्राचीनता का निर्देश करती है । उपरांत यह जिनालय का उल्लेख संवत १६७३ , संवत १७०१ और संवत १९०० मे स्पष्ट प्रकार से मिलता है जिससे यह जिनालय संवत १६७३ पहेले का होना भी संभव है । परंतु इस हेतु और ज़्यादा प्रमाणों और ज़्यादा संशोधन की जरूर है ।
वर्तमान मे वि स २०६२ वैशाख महिने मे जिर्णोद्वार हुआ था और सर्व पट्ट का जीर्णोद्धार २०६४ मे हुआ है । जेठ सुद 11 के दिन श्री सुखसागर पार्श्वनाथ जिनालय की ध्वजा चढ़ाई जाती है ।
पता
श्री सुखसागर पार्श्वनाथ देरासर
तीन लिमडी,खारवाडो - खंभात
गुजरात
पिन कोड नम्बर ३८८६२०
Morning: 5:30 AM - 11:30 AM, Evening: 5:30 PM - 8:30 PM,
Khambhat, also known as Khambat, Khambaj, and Cambay, is a town and the surrounding urban agglomeration in Khambhat Taluka, Anand district in the state of Gujarat. Khambat was the capital of Cambay State, a princely state. The sport of cricket in India was first played in Cambay State in 1721. Khambhat is well connected with roads.
Train: Khambhat Railway Station
Air: Vadodara Airport