Shri Vatprath Tirth Purushadaniya Parshvnath, Baroda, District-Dungarpur (Rajasthan)

अरावली पर्वतमाला के प्राकृतिक परिवेश में आसपुर तहसील जिला डूंगरपुर के गांव बडौदा जिसे वागड क्षेत्र की प्राचीन राजधानी होने का गौरव मिला है पूर्व में वटप्रदक नगर के नाम से जाना जाता था तथा जो इस क्षेत्र की पंचतीर्थी का प्रमुख केन्द्र होने के साथ साथ जिनशासन के गौरवमय इतिहास का साक्षी रहा है। बडौदा गांव में एतिहासिक महत्व के अति प्राचीन जिनालय है जिसमें एक में मूलनायक श्री विमलनाथ भगवान है इसी जिनालय की एक देहरी मे पुरुषादानी पार्श्वनाथ के नाम से विख्यात पार्श्वनाथ प्रभु विराजमान हैं तो दूसरे में मूलनायक केसरिया नाथ के नाम से विख्यात प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव है ।
श्वेतांबर जैन समाज के डूंगरपुर जिले के सबसे बड़े तीर्थ स्थल बड़ौदा गांव का नाम पहले वटप्रदक नगर और मेघपुर पत्तन भी था। मेवाड़ वागड़ के प्राचीन गुहिल शासक सामंतसिह ने विक्रम संवत 1181 ईस्वी में राजप्रमुख कर्मा शाह मेहता के सानिध्य में इसे अपनी राजधानी बनाई थी।
शिलालेखों के आधार पर केसरिया जी की गोबर और मिट्टी से बनी भगवान केसरियाजी की जिस प्रतिमा की पूजा लंकापति रावण करता था तपोबल से जीवन्त हुई उस प्रतिमा को वह अष्टापद तीर्थ से लंका लेकर आया था। लंका पर श्री राम की विजय के बाद इसी प्रतिमा को विभिषण ने श्रीरामजी को सोंपा था जो अयोध्या लाई गई थी। बाद में यह प्रतिमा मुस्लिम आक्रांताओं के हमलों के चलते उज्जैन नगरी लाई गई। जहां पर करीब एक हजार वर्ष तक प्रतिमाजी का पूजन किया गया। श्रीपाल-मयणा सुंदरी द्बारा सिद्ध चक्र आराधना के बाद इसी प्रतिमा के प्रक्षाल जल से श्रीपाल को कोढ रोग से मुक्ति हुई थी। कालक्रम के चलते इस प्रतिमाजी को बाद में बडोदा गांव के मंदिर में लाया गया।
विक्रम संवत 1211 में मुस्लिम लुटेरे अल्लाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ से गुजरात आक्रमण के समय वागड़ की राजधानी वटपद्रक (बड़ौदा) में भी हमला किया। इस हमले से केसरिया जी की प्रतिमा बचाने के लिए धूलेवा नाम के आदिवासी ने प्रतिमा को ऋषभदेव में छुपा कर रख दिया। इसके बाद वहां पर केसरियाजी मंदिर का निर्माण हुआ और प्रतिमाजी प्रतिष्ठित की गई।
बडौदा में चालुक्य परमार और सौलंकीयों का शासन रहा। राजा यशोभद्र भी बडौदा के शासक रहे। जिन्होंने श्रीदत्तसूरीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। श्री यशोभद्र सूरी आचार्य के रूप मे जैन शासन के प्रभावी सुरिराय हुए। विक्रम संवत्1427 में श्री जयानन्दसूरी रचित 'वागड़ प्रवासिका गीत माला' में भी बडौदा वागड की पंच तीर्थी का प्रमुख तीर्थ माना गया है।
श्री पुरषादानी पार्श्वनाथ प्रभु जहां विराज रहे हैं उस जिनालय के मूल नायक श्री विमलनाथ भगवान है। यह अति प्राचीन जिनालय एक हजार वर्ष पुराना होकर तीन मंजिला बना हुआ है। जिनालय भू तल से 52 फिट उंचे चबूतरे पर बना हुआ है। सात शिखर सत्ताईस देहरी वाला यह गगनचुंबी जिनालय कलात्मक एवं आकर्षक मण्डप एवं स्वर्णिम आभा से परिपूर्ण गुंबद युक्त है।
जो श्रद्धालु पारस भक्त 108 पार्श्वनाथ दर्शन कर रहे हैं वह पुरषादानी पार्श्वनाथ नाम से विख्यात प्रभु के दर्शन के लिए आते रहते हैं। पार्श्वनाथ प्रभु की श्वेतवर्ण की पद्मासन मुद्रा में तेजस्वी चमत्कारी प्रतिमाजी अत्यंत ही आकर्षक है।
गौरतलब है कि इस जिनालय से बस स्टेंड स्थित केसरिया नाथ जिनालय तक जाने के लिए सुरंगनुमा रास्ता भी था जो फिलहाल बंद है।
तीर्थ व्यवस्था संचालन - श्रीविमलनाथजी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ बडौदा , तहसील आसपुर ,जिला डूंगरपुर राजस्थान 314038 द्वारा किया जा रहा है।
किसी भी जानकारी के लिए संस्था सचिव लतेश कुमार तराटी से📱9828151862 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
दूरी- उदयपुर से 97 किमी. डूंगरपुर से 37 किमी., बांसवाड़ा से 70 किमी. तथा आसपुर से 7 किमी. की दूरी पर बडौदा गांव स्थित है।

Location

Address: Shri Vatprath Tirth Purushadaniya Parshvnath, Baroda, District-Dungarpur (Rajasthan)

Village/Town : Baroda, Tahsil : Aspur, District : Dungarpur, State : RAJASTHAN, Country : India, Pincode : 314038

Temple Timing

Morning: 5:30 AM - 11:30 AM, Evening: 5:30 PM - 8:30 PM,

How To reach?

Baroda village is located in Aspur Tehsil of Dungarpur district. It is 6km from Aspur and 45km from Dungarpur.
Train: Dungarpur Railway Station
Air: Udaipur Airport