छहढाला

Details

Language : Hindi

Category : Other

Tags : छहढाला, पण्डित दौलतरामजी,

Author : पण्डित दौलतरामजी

Publish Year : 1951

Total Pages : 206

Publisher : Bhartiya Digamber Jain Sangh, Mathura

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पहली ढाल - संसार के चक्रमण के कारण बताते हुए चतुर्गति के दुखों का यथार्थ भाव 

दूसरी ढाल - संसारी प्राणियों की मिथ्या मान्यता के संदर्भ में  (मिथ्या दर्शन, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या चरित्र) 

तीसरी ढाल - सात तत्व-बहिरात्मा, अंतरात्मा व परमात्मा मोक्ष की प्रथम सीढ़ी निरूपित कर ज्ञान चरित्र की उपयोगिता

चौथी ढाल - सम्यक दर्शन से ही ज्ञान और चारित्र में समानता (मनुष्य जन्म की सार्थकता जिन वाणी के श्रवण तथा उसके समान आचरण करने में निहित है)

पांचवी ढाल - बारह भावना के रस, मनुष्य जन्म की दुर्लभता, देह आत्मा का पृथकत्वीकरण, रिश्तों का सच, मुनियों के समान आचरण करने की प्रेरणा

छठवीं ढाल - ध्यान की एकाग्रता, मुनिधर्म की प्ररूपण, परिग्रह, 14 अंतरंग परिग्रह, 10 बाहृय परिग्रह, तप धर्म के 10 भेद का वर्णन 

`छहढाला' जैसी अमर कृति के रचनाकार पण्डित दौलतरामजी का जन्म वि.सं. १८५५-५६ के मध्य सासनी, लाहाथरस में हुआ था । उनके पिता का नाम टोडरमलजी था, जो गंगटीवाल गोत्रीय पल्लीवाल जाति के थे । आपने बजाजी का व्यवसाय चुना और अलीगढ़ बस गये । आपका विवाह अलीगढ़ निवासी चिन्तामणि बजाज की सुपुत्री के साथ हुआ । आपके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़े टीकारामजी थे ।

दौलतरामजी की दो प्रमुख रचनाएँ हैं - एक तो `छहढाला' और दूसरी `दौलत-विलास' ।

छहढाला ने तो आपको अमरत्व प्रदान किया ही; आपने १५० के लगभग आध्यात्मिक पदों की रचना की, जो दौलत-विलास में संग्रहित हैं । सभी पद भावपूर्ण हैं और `देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर' की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं ।

`छहढाला' ग्रन्थ का निर्माण वि. सं. १८९१ में हुआ । यह कृति अत्यन्त लोकप्रिय है तथा जन-जन के कंठ का हार बनी हुई है । इस ग्रन्थ में सम्पूर्ण जैनधर्म का मर्म छिपा हुआ है ।

वि. सं. १९२३ में मार्ग शीर्ष कृष्णा अमावस्या को पण्डित दौलतरामजी का देहली में स्वर्गवास हो गया ।