पौष कृष्ण द्वितीया, वीर निर्वाण संवत 2549 भगवान मल्लिनाथ का ज्ञान कल्याणक के शुभ अवसर पर यह digital version पौस कृष्ण प्रतिपदा वीर निर्वाण सम्वत् २४७७ को ब्र. श्री लक्ष्मीचन्द जी वर्णी द्वारा प्रकाशित प्रति का बनाया गया है। आचार्य श्री सूर्यसागर जी महाराज द्वारा संग्रहीत एवं प्रणीत यह "आत्मबोध मार्तंड" जी सहजता से हार्ड कॉपी के रूप में अब अधिक कहीं उपलब्ध देखने में नहीं आता है, यदि कोई भव्य जीव इस ग्रंथ को प्रिंट करवाकर साधर्मी जनों को उपलब्ध करा पायें तो जिनवाणी की रक्षा और जैन धर्म की प्रभावना में अमूल्य योगदान रहेगा।
"आत्मबोध मार्तंड " जी की यह डिजिटल प्रति बनाने में अत्यधिक सावधानी रखी गई है किंतु अज्ञान वश, प्रमाद वश एवं अत्यंत अल्प बुद्धि के धारक मूढ़ मति होने से हमसे टाइपिंग संबंधी त्रुटियां होना अवश्य सम्भावी हैं। ज्ञानी जन सुधार कर पढ़ें और हम पर क्षमा भाव धारण करें ऐसा करबद्ध निवेदन है।
श्री आचार्य सूर्यसागरजी महाराज का जन्म कार्तिक शुक्ल नवमी, शुक्रवार विक्रम सम्वत् 1940 (ई. सन् 1883) ग्वालियर रियासत के शिवपुर जिलान्तर्गत प्रेमसर नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री हीरालाल व माता का नाम गेंदाबाई था। आप पोरवाल दिगम्बर जैन जाति के यसलहा गोत्र में उत्पन्न हुए थे।
आसोज शुक्ला षष्ठी, वि. सं. 1981 को श्री आचार्य शान्तिसागरजी महाराज ( छाणी) के पाय आपने ऐलक दीक्षा ले ली। ऐलक हो जाने के बाद इन्हीं हजारीमलजी का नाम सूर्यसागरजी रखा गया था। इसके 51 दिन पश्चात् मंगसर कृष्णा एकादशी को हाटपीपल्या ( मालवा ) में उन्हीं आचार्य शान्तिसागरजी के पास सर्व परिग्रह को त्यागकर आपने निर्ग्रन्थ दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली।